‘मां, सब्जी में नमक कम है।’ – चूल्हे के पास बैठा छोटू पहला निवाला मुंह में रखते हुए बोला।
“अभी दे रही हूं” – मां ने नमक के डिब्बे की तरफ हाथ बढ़ाया तो छोटू ने अपना हाथ आगे कर दिया।
“हाथ में नहीं दूंगी” – मां ने थाली में नमक रखते हुए कहा।
“हाथ में क्यों नहीं?” – छोटू ने हैरानी से मां को घूरते हुए पूछा।
“हाथ में नमक देने से हमारे धर्म पर असर पड़ता है,” – मां ने रोटी पलटते हुए जवाब दिया।
“कहां चला जाता है?” – छोटू ने जिज्ञासा से फिर पूछा।
“अगर हम तुम्हें हाथ में नमक देंगे तो हमारा धर्म तुम्हें चला जाएगा।”
“फिर क्या होगा?”
छोटू को देखते हुए और उससे बात करते हुए उसकी माँ बातचीत में इतनी मशगूल हो गई कि उसका हाथ जल गया।
मां ने थोड़ा झिड़कते हुए कहा, “तुम्हारी बातों में हाथ जल गया। चुपचाप खाना खाओ।”
छोटू ने मार खाकर भी मुस्कुराते हुए खाना खा लिया।
अब हर बार जब मां उसे नमक देती, छोटू जानबूझकर हाथ बढ़ा देता और वही सवाल पूछता।
समय के साथ छोटू ने सवाल पूछना छोड़ दिया, पर मां का प्यार उसके दिल में बढ़ता गया।
गरीबी की ज़िंदगी एक ऊबड़-खाबड़ रास्ता है, जहां छोटी-छोटी खुशियां भी कभी-कभी बड़ी मुसीबतों में बदल जाती हैं।
एक दिन मां बीमार पड़ गई। छोटू के पिता ने अपनी सामर्थ्य के अनुसार डॉक्टरों से इलाज करवाया, पर मां की तबीयत बिगड़ती ही जा रही थी। मां की स्थिति और कर्ज का बोझ पिता की हिम्मत को तोड़ रहा था।
एक दिन छोटू मां के पास बैठा, “मां, तुमको क्या हो गया?”
मां ने हल्की सी मुस्कान लाते हुए कहा, “कुछ नहीं बेटा, बस थोड़ी बीमार हूं। जल्दी ठीक हो जाऊंगी।”
“बीमार कैसे होते हैं, मां?” छोटू ने गंभीरता से पूछा।
“ये सब हमारे कर्मों का फल है, बेटा। शायद हमने कुछ गलती की होगी,” मां ने मजबूर होकर कहा।
छोटू थोड़ी देर चुप रहा, शायद कुछ सोच रहा था। फिर अचानक भागता हुआ चूल्हे के पास गया और वापस आकर मां के पास खड़ा हो गया।
“मां, हाथ दो,” छोटू ने आग्रह किया।
“क्या चाहिए?” मां ने हैरानी से पूछा।
“हाथ दो न, मां।” छोटू की ज़िद के आगे मां ने हाथ बढ़ा दिया
छोटू ने अपनी नन्हीं सी मुट्ठी खोली, जिसमें उसने कुछ नमक छिपा रखा था, और उसे मां की हथेली पर रख दिया।
“मां, मैंने तुम्हें अपना सारा धर्म दे दिया। अब तुम्हारे सारे दुख दूर हो जाएंगे, और तुम जल्दी ठीक हो जाओगी।” छोटू की बात सुनकर मां की आंखों में आंसू भर आए और उसने उसे अपनी छाती से लगा लिया।
दूर से यह दृश्य देख रहे पिता के चेहरे पर एक सुकून भरी मुस्कान आ गई। उस पल में, मां का आधा दर्द तो बेटे की मासूमियत से ही मिट गया था।
सच ही कहा गया है, बच्चे आधा दुःख हर लेते हैं।