एक तेली अपने कोल्हू के पास सो रहा था।
उसका बैल कोल्हू खींच रहा था।
उधर से एक दार्शनिक गुजरा।
उसने तेली को जगाकर अपने बारे में बताया और बोला कि इस बैल की आंखों पर तुमने पट्टी क्यों बांधी हुई है।
तेली ने उसे बताया कि पट्टी न हो तो वह समझ जाएगा कि वह एक ही जगह घूम रहा है और वह चलना बंद कर देगा।
दार्शनिक ने पूछा कि अभी तो तुम सो रहे थे। अगर वह चलना बंद कर देगा तो तुम्हें कैसे पता चलेगा कि वह चल नहीं रहा है।
तेली बोला कि तुमने देखा होगा कि इसके गले में एक घंटी लटकी हुई है, जब बैल चलता है तो घंटी बजती रहती है।जब घंटी बजनी बंद हो जाती है तो मैं समझ जाता हूं कि यह रुक गया है और मैं इसे कोंच देता हूं।
दार्शनिक ने बोला कि यह भी तो संभव है कि वह एक ही जगह खड़ा हो जाए और अपनी गर्दन हिलाकर घंटी बजाता रहे।
इस पर तेली ने झुंझलाकर कहा कि यह ऐसा नहीं करेगा।
दार्शनिक ने पूछा कि तुम दावे के साथ कैसे कह सकते हो कि वह ऐसा नहीं करेगा। इस पर तेली बोला कि यह बैल है, दार्शनिक नहीं, जो इतनी धूर्तता उसके दिमाग में आए।
स्रोत: मासिक पत्रिका