Story – अच्छा चोर

एक नगर में एक सेठ और एक गरीब का घर पास-पास में थे। सेठ को कभी मलाल न होता था कि एक गरीब उसका पड़ोसी है।

गरीब की बेटी, जिसका नाम रुक्मणि था, सयानी हो चुकी थी। एक रोज़ गरीब ने सेठ से कुछ धन उधार माँगा था ताकि सयानी हुई बेटी के हाथ पीले किये जा सकें। परन्तु सेठ ने उसे इनकार कर दिया।

उसी रात सेठ के घर में एक चोर घुस आया। अभी तक सेठ और सेठानी सोये नहीं थे, तो चोर वहीं दुबक कर बैठ गया।

सेठ सेठानी आपस में बातें कर रहे थे, “देखते ही देखते रुक्मणि विवाह योग्य हो गई है।” सेठानी ने कहा।

“हां लड़कियां कुरड़ी(कूड़े का ढेर) की तरह बढ़ती हैं, पता ही नहीं चलता कब सयानी हो जाती हैं।” सेठ ने कहा।

“अब रुक्मणि के पिता को उसके हाथ पीले कर देने चाहिए, पता नहीं उसके माता पिता क्यों नहीं ये बात सोच रहे।” सेठानी ने कहा।

“वो सोच तो रहें हैं, पर उनके पास धन की कमी है। आज रुक्मणि के पिता ने मुझसे कुछ धन उधार मांगा था।” सेठ ने बताया।

“तो क्या आपने उनको धन दिया?” सेठानी ने पूछा।

“नहीं मैंने उसे देने से इनकार कर दिया, ये सोचकर कि वो गरीब आदमी है लौटाएगा कैसे…पर मुझे लगता है रुक्मणि के पिता को कुछ धन दे देना चाहिए। लड़की का कन्यादान ही समझ लेता। इससे कुछ पुण्य मिल जाता, पर मैं अब उसे नहीं दे सकता। जिसे मैं धन के लिए एक बार मना कर देता हूँ ,उसे दुबारा धन नहीं देता।” कहते हुए सेठ ने आह भरी। कुछ देर बाद सेठ सेठानी बातें करते करते सो गए।

चोर ने सेठ के घर से धन की पोटली चुरा ली और सेठ के घर से निकल आया। सेठ के घर से निकल कर उसे याद आया कि उसकी पत्नी ने कुछ बर्तन चुरा कर लाने का बोला था। वो तो वह भूल गया था, पर अब दुबारा सेठ के घर में घुसना उसे सुरक्षित नहीं लगा, तो उसने सोचा गरीब के घर से कुछ बर्तन चुरा ले जाता हूँ। यह सोचकर वह गरीब के घर में बरतन चुराने के उद्देश्य से घुस गया।

गरीब के घर में भी जाग थी। जिसकी सयानी बेटी घर में कुंवारी बैठी रहे उन माता पिता को नींद भी कैसे आये।

चोर दुबक कर बैठ गया।

“…तो सेठ ने धन देने से इनकार कर ही दिया।” गरीब की पत्नी ने कहा।

“हाँ! इनकार कर दिया, पर वो अपनी जगह सही भी है। वो व्यापारी आदमी है। उसे धन का लेन देन करना होता है। हम उसे समय पर धन न लौटा पाये तो उसके व्यापार की पूँजी अटक जाएगी। अब उसे भी अपना सोचना होगा।” गरीब ने ये कहते हुए ठंडी आह भरी।

“परन्तु आप जानते हो न रुक्मणि की उम्र 16 वर्ष हो चुकी है और उन सन्यासी बाबा ने कहा था कि अगर 17 वर्ष के होने तक इसका विवाह न किया तो रुक्मणि की मृत्यु हो जाएगी। रुक्मणि को 17 वर्ष की होने में केवल 4 मास शेष बचे हैं। नहीं तो हमारी इकलौती बेटी हमें बुढ़ापे में बेसहारा छोड़कर भगवान को प्यारी हो जाएगी।” गरीब की पत्नी ने सुबकते हुए कहा।

“हाय रे मेरी किस्मत! मुझे गरीब के घर पैदा किया और साथ में रुक्मणि को मिला अभिशाप… मैं क्या करूँ… कहाँ से धन लाऊँ उसका कन्यादान करने के लिए…इससे बेहतर ईश्वर रुक्मणि की जगह मेरे प्राण ले ले।” गरीब ने आह भरी।

चोर सब सुन रहा था। चोर ने सोचा मैं तो अपनी मौज मस्ती के लिए चोरी करता हूँ। असली धन की आवश्यकता तो इस गरीब को है वरना इसकी बेटी मृत्यु को प्राप्त हो जाएगी। वो सन्तान को खोने का दर्द वो समझता था। दो वर्ष पूर्व उसके छोटे पुत्र की सर्पदंश से मृत्यु हो चुकी थी। मुझसे अच्छा तो वो सेठ ही है, जिसने कम से कम इसे धन देने का सोचा तो सही।

उसने रसोई में से कुछ बर्तन चुरा कर अपनी साथ में लाई झोली में डाल लिए। और फिर चूल्हे में से एक कोयला निकाला और आँगन में ये लिख दिया, “सेठ की तरफ से रुक्मणि के विवाह के लिए दिया गया धन,…. एक चोर।” उसके पास धन की पोटली रखकर और चुराए हुए बर्तन लेकर वहाँ से रफूचक्कर हो गया, क्योंकि उसे भी पत्नी से उलाहना नहीं लेना था।

सुबह दोनों घरों में हड़कंप था। सेठ के यहाँ धन चोरी से और गरीब के यहाँ धन मिलने से, और बर्तन चोरी होने से। एक बार तो गरीब ने सोचा क्यों न धन छुपा लूँ। रुक्मणि का विवाह कर दूँगा… फिर उसने सोचा कि लोग पूछेंगे तो क्या कहूंगा? धन कहाँ से आया…और लोग शक करेंगे सेठ के घर मैंने चोरी की है। मुझसे अच्छा तो वो चोर ही अच्छा निकला, जो मेरी व्यथा सुनकर चुराया हुआ धन रुक्मणि के विवाह के लिए छोड़कर चला गया। जब एक चोर इतनी दयालुता दिखा सकता है तो मैं क्या ईमानदारी नहीं निभा सकता?

गरीब सेठ के धन की पोटली उसके घर ले गया और सारा किस्सा कह सुनाया। सेठ को अपने घर लाकर चोर की लिखी हुई बात भी पढ़वाई।

सेठ ने सोचा ‘एक चोर इतना अच्छा हो सकता है। चुराया हुआ धन इस गरीब की बेटी के विवाह के लिए छोड़ जाता है और कहता है कि सेठ की तरफ से है। तो क्या मैं इस गरीब की बेटी के लिए कुछ धन नहीं दे सकता?’ ,

उसने गरीब को उस पोटली में से आधा धन दे दिया और कहा “ये लो ..ये धन रुक्मणि के विवाह के लिए है और इसे लौटाने की भी जरूरत नहीं है।”

यह सुनकर गरीब बोला, “सेठ जी आप बहुत अच्छे हैं।”

“अच्छा न मैं हूँ, न तुम हो। अच्छा तो वो चोर था जिसने रुक्मणि के विवाह की व्यवस्था कर दी। मेरे पास धन होते हुए भी मैं तुम्हें न दे सका…और वो चुराया हुआ धन भी दे गया, काश ऐसे अच्छे चोर और भी हों।” सेठजी ने ये कहते हुए गरीब को गले से लगा लिया।

ज़रूरी नहीं है कि हम हमेशा बड़े-बड़े काम करें। अक्सर दयालुता के छोटे-छोटे कार्य, प्रोत्साहन के कुछ शब्द, या कठिन समय में हमारा समर्थन ही सबसे गहरा प्रभाव छोड़ते हैं। आइए, हम सभी ऐसे इंसान बनने की कोशिश करें जो दूसरों के जीवन में रोशनी और आशा लाएँ, ठीक वैसे ही जैसे हम अपने जीवन में चाहते हैं।

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