“मुझे नहीं पता, समीर की प्रिंसिपल ने मुझे क्यों बुलाया है! बस स्कूल से फोन आया था, विशाल भी जा रहे हैं साथ में”
“अच्छा जल्दी होकर आओ। गीता का फोन आया था कि बड़ी भाभी को जल्दी भेज देना, कथा का प्रसाद बना देंगी, और अटैची भी नहीं लगाई तुमने, सोमवार को मिर्ज़ापुर निकलना है।” — मांजी का मुंह फूला हुआ था।
मैं कार में बैठते ही बड़बड़ाने लगी, “देखा आपने? दोनों देवरानियां सुबह-सुबह ऑफिस निकल लेती हैं। रात को घर पहुंचती हैं, कोई हिसाब नहीं मांगता। मैं आधा घंटा भी बाहर बिता लूं तो बवाल है।
आए दिन ननद के यहां पूजा-पाठ, जन्मदिन, बस बड़ी भाभी चाहिए काम कराने को। जोधपुर वाली शादी में जाने के नाम पर दोनों ने पल्ला झाड़ लिया कि छुट्टी नहीं मिली, ऊपर से हर बात पर सुनो कि मंझली बहू बीस हज़ार कमाती है, छोटी पच्चीस! बड़ी बहू है फ़ालतू, हर जगह जाने के लिए। अंग्रेज़ी माध्यम से पढ़ाई की होती तो मैं भी शायद आज दस-पंद्रह हज़ार कमाने लायक होती।”
प्रिंसिपल के ऑफिस में झिझकते हुए प्रवेश किया।
“बैठिए! मैंने ही फोन करवाया था। कुछ पूछना था आपसे। हिंदी दिवस पर समीर ने एक कविता सुनाई थी, उसने बताया कि वो आपने लिखी थी।” — इतने बड़े स्कूल की प्रिंसिपल होकर भी वो बहुत ही मधुरता से बात कर रही थीं।
“जी! कुछ ग़लत” — मैं घबरा गई।
“नहीं, बहुत ही सुंदर लिखा था आपने। दरअसल, आजकल ऐसी शुद्ध, त्रुटिहीन भाषा कम ही देखने को मिलती है। आपकी शैक्षणिक योग्यता?”
“एमए, हिंदी साहित्य और बीएड। शादी से पहले हिंदी पढ़ाती थी, इसीलिए भाषा शुद्ध है।” — बहुत सालों बाद तारीफ़ सुनकर मैं प्रसन्न हो उठी।
प्रिंसिपल बड़ी तन्मयता से सुन रही थीं, “अच्छा! तो अब क्यों नहीं पढ़ाती हैं? घर में मनाही है?”
“जहां भी आवेदन किया, अंग्रेज़ी ना बोल पाने के कारण बात नहीं बनी। अजीब बात है, हिंदी पढ़ाने के लिए भी अंग्रेज़ी बोलने वाली अध्यापिका चाहिए!” — मेरे मन के दुख सामने आ गए।
“देखिए! मैं मुद्दे पर आती हूं। आपकी कविता पढ़कर, आपसे बात करके, हिंदी भाषा पर पकड़ मैं देख चुकी हूं। डिग्री भी है, अनुभव भी, हमें अपने स्टाफ में आप जैसी अध्यापिका की ही आवश्यकता है। यदि आप इच्छुक हैं, तो लिखित परीक्षा दे दीजिए।”
घर पहुंची, तो सब बरसने के लिए तैयार बैठे थे।
छोटी ननद घूरते हुए बोली, “भाभी! कहां थीं आप? फोन भी बंद था। मां ने ही रोटी सेंककर पापा को खिलाई। दीदी के यहां भी जाना है आपको”
विशाल ने मुस्कुराते हुए उसको अपने पास बैठाया, “मीतू प्रसाद बनाने नहीं जा पाएगी, सर्टिफिकेट्स वगैरह अटेस्ट कराने जाना है मां, जोधपुर जाना भी नहीं हो पाएगा, चिंटू के स्कूल में इसकी नौकरी लग गई है”
सब हतप्रभ थे और मांजी परेशान। अब तो सारी रिश्तेदारियां संकट में पड़ जाएंगी, “नौकरी? अब छोटी-मोटी तीन-चार हज़ार की नौकरी के लिए कहां भटकोगी, हटाओ”
“बड़ी क्लास के बच्चों को हिंदी पढ़ानी है। पैंतीस हज़ार वेतन मिलेगा आपकी बड़ी बहू को, आशीर्वाद दीजिए मांजी” — मैं हंसते हुए चरण स्पर्श के लिए झुक गई।