Story – परफेक्ट जोड़ी

अंशु मुंबई जानेवाली बस में चढ़ी और अपनी सीट के ऊपर सामान रख, आंख मूंदकर बैठ गई। मस्तिष्क में बारंबार बीते कुछ दिनों के वे दृश्य घूम रहे थे, जिनसे पीछा छुड़ा वह मुंबई भाग रही थी। यश की हर बात पर लापरवाही और उसकी हर लापरवाही पर अंशु का इरिटेट होना…

यश को अक्सर प्रोजेक्ट के सिलसिले में देश-विदेश ट्रैवल करना पड़ता, मगर ऐसा कोई ट्रिप नहीं होता, जहां उसका कोई-न-कोई कपड़ा होटल में छूट न गया हो… आराम से घर से निकलना और आख़िरी कॉल पर चेक-इन करना… यह था यश.

यदि दोनों को कहीं साथ जाना होता, तो अंशु तैयार होकर गेट पर खड़ी हो जाती, पर यश की कुछ ना कुछ लास्ट मिनट की तैयारी चल रही होती…

तीन दिन बाद यश की यूएस की फ्लाइट थी. वह आलमारी में कुछ खोज रहा था, तो अंशु ने पूछा, “क्या नहीं मिल रहा?”

“नहीं नहीं, कुछ नहीं… ऐसे ही…” बाद में पता चला यश को अपना पासपोर्ट नहीं मिल रहा था. अंशु बिफर उठी, “हे भगवान, तुम इतने लापरवाह कैसे हो सकते हो?” हर बार अंशु उसकी तैयारी कराती, मगर इस बार उसने क़सम खा ली कि चाहे कुछ भी हो, वह उसकी कोई मदद नहीं करेगी. वह भी तो अपने सब काम ख़ुद संभालती है. इसी तरह यश को भी सीखना होगा.

उसने यश को सबक सिखाने की सोची और उसकी फ्लाइट से दो दिन पहले अचानक मुंबई अपनी मौसी के घर जाने का प्रोग्राम बना लिया, इस अकड़ में कि ‘करने दो उसे ख़ुद मैनेज. जब सिर पर पड़ेगी, तभी अक्ल आएगी.’

आज, मौसी की ममताभरी छांव में दो दिन बिता अंशु वापस घर की राह चल पड़ी. अनमने से घर का दरवाज़ा खोला, तो हर तरफ़ यश ही यश खड़ा नज़र आ रहा था. हंसता-मुस्कुराता यश… बातें बनाता यश…

अंशु ने टेबल पर बैग रखा, तो कुर्सी की बैक पर फैले टॉवल पर नज़र पड़ी. एक स्मृति उभरी, “कितनी बार कहा है टॉवेल बालकनी में सुखाया करो…” अंशु के ग़ुस्से पर यश का जवाब, “क्या कह रही हो जान, पता है यह टॉवेल मुझसे मिन्नतें कर रहा था कि मुझे पूरा दिन बाहर टांगे रखते हो, कितनी गर्मी है बाहर, ज़रा 5 मिनट ख़ुद खड़ा होकर देखो, सूखा अचार बन जाओगे, इसीलिए मैंने उसको यहां डाल दिया, वो भी ख़ुश और मैं भी.”

थोड़ा आगे चली, एक जूता इधर, तो एक जूता उधर पड़ा था. एक और स्मृति कौंधी, “जूते एक साथ उतारकर क्यों नहीं रखते?” भड़कती अंशु और यश की ठंडी बयार-सी बातें, “पूरा दिन तो बेचारे साथ ही रहते हैं, घर पर तो उन्हें कुछ स्पेस दो, पता है दोनों शिकायत कर रहे थे कि जब देखो हमें साथ-साथ चिपकाए रखते हो, हमें भी एक-दूसरे से थोड़ा ब्रेक चाहिए. तुमको अपनी बीवी से हर व़क्त चिपके रहना है तो चिपको, पर हमें माफ़ करो…”

उसकी ऐसी ही न जाने कितनी बातों को यादकर अंशु भीगी आंखों से मुस्कुरा उठी, अब वे बातें बचकानी नहीं लग रही थीं, प्यार आ रहा था उन पर.

मौसी के शब्द कानों में गूंज रहे थे, “ऊपरवाला ऐसी उलट जोड़ियां ही बनाता है, जिनमें एक की कमी दूसरा पूरी कर दे और दोनों मिलकर संपूर्ण हो जाएं. परफेक्ट हो जाएं.”

Scroll to Top