“पिताजी! पंचायत इकठ्ठी हो गई, अब संपत्ति का बँटवारा कर दो”, घर के सबसे बड़े बेटे ने अपने बाप से कहा।
सरपंच — ”जब साथ में निबाह न हो तो औलाद को अलग कर देना ही ठीक है, अब यह बताओ तुम किस बेटे के साथ रहोगे ?” सरपंच ने बुजुर्ग बाप से पूछा।
“अरे ! इनसे क्या पूछना, चार महीने पिताजी मेरे साथ रहेंगे और चार महीने मंझले के पास, चार महीने छोटे के पास रहेंगे” — बड़े बेटे ने फ़िर अपनी बात रखी ।
सरपंच — ”ठीक है, चलो तुम्हारा तो फैसला हो गया, अब करें जायदाद का बँटवारा !”
बुजुर्ग बाप जो सिर झुकाये बैठा था, एकदम चिल्ला के बोला — “कैसा फैसला बे? अब मैं करूंगा फैसला, इन तीनो निकम्मों औऱ अपने स्वार्थ में अंधों को घर से बाहर निकाल कर, चार महीने बारी बारी से आकर रहें मेरे पास और बाकी महीनों का अपना इंतजाम खुद करें। जायदाद का मालिक मैं हूँ , ये नहीं ।”
तीनों लड़कों और पंचायत का मुँह खुला का खुला रह गया, जैसे कोई नई बात हो गई हो ……!!!