Story – पिता का आशीर्वाद

जब उसकी मृत्यु का समय सन्निकट आया तो उसने अपने एकमात्र पुत्र को बुलाकर कहा कि बेटा — “मेरे पास धन संपत्ति तो हैं नहीं है जो मैं तुम्हें विरासत में दूं , पर मैंने जीवन भर सच्चाई और प्रामाणिकता से काम किया है तो मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूं कि, तुम जीवन में बहुत सुखी रहोगे और धूल को भी हाथ लगाओगे तो वह सोना बन जायेगी”। बेटे ने सिर झुकाकर पिताजी के पैर छुए। पिता ने सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया और संतोष से अपने प्राण त्याग कर दिए।

अब घर का खर्च बेटे धनपाल को संभालना था। उसने एक छोटी सी ठेलागाड़ी पर अपना व्यापार शुरू किया। धीरे-धीरे व्यापार बढ़ने लगा। एक छोटी सी दुकान ले ली। व्यापार और बढ़ा। अब नगर के संपन्न लोगों में उसकी गिनती होने लगी। उसको विश्वास था कि यह सब मेरे पिता के आशीर्वाद का ही फल है क्योंकि उन्होंने जीवन में दुख उठाया पर कभी धैर्य नहीं छोड़ा, श्रद्धा नहीं छोड़ी, प्रामाणिकता नहीं छोड़ी, इसलिए उनकी वाणी में बल था और उनके आशीर्वाद फलीभूत हुए और मैं सुखी हुआ। उसके मुंह से बार बार यह बात निकलती थी।

एक दिन एक मित्र ने पूछा कि- “तुम्हारे पिता में इतना बल था तो वह स्वयं संपन्न क्यों नहीं हुए? सुखी क्यों नहीं हुए ?” धर्मपाल ने कहा कि मैं पिता की ताकत की बात नहीं कर रहा हूं मैं उनके आशीर्वाद की ताकत की बात कर रहा हूं। इस प्रकार वह बार-बार अपने पिता के आशीर्वाद की बात करता और कहता कि मैं अपने पिता के आशीर्वाद के काबिल निकलूं यही चाहता हूं।

ऐसा करते हुए कई साल बीत गए। वह विदेशों में व्यापार करने लगा। जहां भी व्यापार करता उसे बहुत लाभ होता। एकबार उसके मन में आया कि मुझे लाभ ही लाभ होता है तो मैं एक बार नुकसान का अनुभव करूं। तो उसने अपने एक मित्र से पूछा कि ऐसा व्यापार बताओ कि जिसमें मुझे नुकसान हो। मित्र को लगा कि इसको अपनी सफलता और धन का घमंड आ गया है। इसका घमंड दूर करने के लिए इसको ऐसा धंधा बताऊं कि इसको नुकसान ही नुकसान हो। मित्र ने उसको बताया कि
तुम भारत सें लोंग खरीदो और जहाज में भरकर अफ्रीका के जंजीबार में जाकर बेंचो। धर्मपाल को यह बात ठीक लगी।

जंजीबार तो लौंग का देश है। व्यापारी वहां से लौंग भारत में लाते हैं और यहाँ दस-बारह गुना भाव पर बेचते हैं। भारत में खरीदकर जंजीबार में बेचेगा तो इसमें साफ नुकसान सामने दिख रहा है। परंतु धर्मपाल ने तय किया कि मैं भारत में लौंग खरीद कर, जंजीबार खुद लेकर जाऊंगा। देखूँ “पिता का आशीर्वाद” कितना साथ देता हैं?

नुकसान का अनुभव लेने को उसने भारत में लोंग खरीदे और जहाज में भरकर खुद उनके साथ जंजीबार द्वीप पहुंचा। जंजीबार में सुल्तान का राज्य था। धर्मपाल जहाज से उतरकर लंबे रेतीले रास्ते पर जा रहा था, वहां के व्यापारियों से मिलने को। उसे सामने से सुल्तान जैसा व्यक्ति पैदल सिपाहियों के साथ आता हुआ दिखाई दिया। उसने किसी से पूछा कि ये कौन है उन्होनें कहा कि यह सुल्तान हैं। सुल्तान ने उसको सामने देखकर उसका परिचय पूछा। उसने कहा कि मैं भारत के गुजरात के प्रान्त ‘खंभात’ का व्यापारी हूं और यहां पर व्यापार करने आया हूं। सुल्तान ने उसको व्यापारी समझ कर उसका आदर किया और उससे बात करने लगा।

धर्मपाल ने देखा कि सुल्तान के साथ सैकड़ों सिपाही है परंतु उनके हाथ में तलवार बंदूक आदि कुछ भी न होकर बड़ी-बड़ी चलनियां है। उसको आश्चर्य हुआ। उसने विनम्रता पूर्वक सुल्तान से पूछा कि आपके सैनिक इतनी चलनियाँ लेकर के क्यों जा रहे हैं। सुल्तान ने हंसकर कहा कि बात यह है कि आज सवेरे मैं समुद्र तट पर घूमने आया था। तब मेरी उंगली में से एक अंगूठी यहां कहीं निकलकर गिर गई। अब रेत में अंगूठी कहां गिरी पता नहीं। तो इसलिए मैं इन सैनिकों को साथ लेकर आया हूं। ये रेत छानकर मेरी अंगूठी उसमें से तलाश करेंगे। धर्मपाल ने कहा- अंगूठी बहुत महंगी होगी। सुल्तान ने कहा- नहीं उससे बहुत अधिक कीमत वाली अनगिनत अंगूठी मेरे पास हैं। पर वह अंगूठी एक फकीर का आशीर्वाद है। मैं मानता हूं कि मेरी सल्तनत इतनी मजबूत और सुखी उस फकीर के आशीर्वाद से है। इसलिए मेरे मनमें उस अंगूठी का मूल्य सल्तनत से भी ज्यादा है। इतना कहकर के सुल्तान ने फिर पूछा कि बोलो सेठ- इस बार आप क्या माल ले कर आये हो।धर्मपाल ने कहा कि लौंग

लौंग” !!! सुल्तान के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। यह तो लौंग का ही देश है सेठ। यहां लौंग बेचने आये हो? किसने आपको ऐसी सलाह दी। जरूर वह कोई आपका दुश्मन होगा। यहां तो एक पैसे में मुट्ठी भर लोंग मिलते हैं। यहां लौंग को कौन खरीदेगा‘ और तुम क्या कमाओगे?

धर्मपाल ने कहा कि मुझे यही देखना है कि यहां भी मुनाफा होता है या नहीं। मेरे पिता के आशीर्वाद से आज तक मैंने जो भी धंधा किया उसमें मुनाफा ही मुनाफा हुआ। तो अब मैं देखना चाहता हूं कि उनका आशीर्वाद यहां भी फलता हैं या नहीं?

सुल्तान ने पूछा कि- “पिता के आशीर्वाद” इसका क्या मतलब? धर्मपाल ने कहा कि मेरे पिता सारे जीवन ईमानदारी और प्रामाणिकता से काम करते रहे, परंतु धन नहीं कमा सके। उन्होंने मरते समय मुझे भगवान का नाम लेकर मेरे सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिए थे कि “तेरे हाथ में धूल भी सोना बन जाएगी।” ऐसा बोलते — बोलते धर्मपाल नीचे झुका और जमीन से रेत में से एक मुट्ठी भरी और सम्राट सुल्तान के सामने मुट्ठी खोलकर उंगलियों के बीच में से रेत नीचे गिराई तो धर्मपाल और सुल्तान दोनों का आश्चर्य का पार नहीं रहा। उसके हाथ में एक हीरे जड़ित अंगूठी थी। यह वही सुल्तान की गुम हुई अंगूठी थी। अंगूठी देखकर सुल्तान बहुत प्रसन्न हो गया।

“वाह खुदा! आपकी करामात का पार नहीं। आप पिता के आशीर्वाद को भी सच्चा करते हो”। धर्मपाल ने कहा कि फकीर के आशीर्वाद को भी वही परमात्मा सच्चा करता है। सुल्तान बहुत खुश हुआ धर्मपाल को गले लगाया और कहा कि मांग सेठ। आज तू जो मांगेगा मैं दूंगा। धर्मपाल ने कहा कि आप 100 वर्ष तक जीवित रहो और प्रजा का अच्छी तरह से पालन करो।प्रजा सुखी रहे। इसके अलावा मुझे कुछ नहीं चाहिए। सुल्तान और अधिक प्रसन्न हो गया। उसने कहा कि सेठ तुम्हारा सारा माल मैं आज खरीदता हूं और तुम्हारी मुंह मांगी कीमत दूंगा।

इस कहानी से से हमे यह शिक्षा मिलती है कि पिता का आशीर्वाद हों तो दुनिया की कोई ताकत कहीं भी तुम्हें पराजित नहीं होने देगी। पिता और माता की सेवा का फल निश्चित रूप से मिलता है।
आशीर्वाद जैसी और कोई संपत्ति नहीं।
बालक के मन को जानने वाली मां और भविष्य को संवारने वाले पिता यही दुनिया के दो महान ज्योतिषी है, बस इनका सम्मान करो तो तुमको भगवान के पास भी कुछ मांगना नहीं पड़ेगा।

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